(जे के मिश्रा) बिलासपुर। फसल का समर्थन मूल्य पाने के लिए किसानों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसका एक उदाहरण लोरमी के किसान तोपसिंह राठौर के साथ हुआ। धान बेचने के बाद सेवा सहकारी समिति ने किसान को 10 साल तक भुगतान के लिए दौड़ाया। जब कोई हल नहीं निकला, तो मजबूर होकर किसान ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने किसान के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन इसके बावजूद समिति ने भुगतान करने में देरी की। फिर, किसान ने अवमानना याचिका दायर की, जिसके बाद जाकर सेवा सहकारी समिति लोरमी ने साढ़े तीन लाख रुपए का चेक जारी किया।
10 साल की कानूनी लड़ाई
तोपसिंह राठौर ने वर्ष 2014 में सेवा सहकारी समिति लोरमी में 525 बोरा धान तौल कराया था। लेकिन समिति ने उन्हें भुगतान नहीं किया। 2019 में उप पंजीयक सहकारी समिति मुंगेली ने जांच कर भुगतान के निर्देश दिए, फिर भी भुगतान में देरी होती रही। अंततः किसान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की सिंगल बेंच में हुई।
हाईकोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने सेवा सहकारी समिति लोरमी को आदेश दिया कि 15 दिनों के भीतर किसान को 2014 के समर्थन मूल्य और बोनस के साथ भुगतान किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि भुगतान में और देरी होती है, तो किसान फिर से अवमानना याचिका दायर कर सकता है।
अवमानना याचिका के बाद मिली राहत
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद समिति द्वारा भुगतान नहीं किया गया, जिससे परेशान होकर किसान ने अवमानना याचिका दायर की। इस बार जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई, जिसमें समिति ने बताया कि किसान को 3 लाख 45 हजार 500 रुपए का चेक दिया जा चुका है। कोर्ट ने किसान को राहत देते हुए निर्देश दिया कि अगर चेक से किसी प्रकार की समस्या होती है, तो किसान फिर से कोर्ट का सहारा ले सकता है।
अब किसान को उम्मीद है कि यह भुगतान जल्द ही उसके खाते में जमा हो जाएगा, जिससे उसे वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद न्याय मिलेगा।
