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अप्रवेशी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के आदर्श गुरुकुल विद्यालय के नाम से खोले गए पोटा केबिन

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Deepak Mittal

नवभारत टाइम्स जिला बीजापुर ब्यूरो प्रमुख जरखान

आदिवासी बहुल जिलों में शिक्षा की बेहतर सुविधा, तथा दूरस्थ स्थानों के शाला त्यागी, अप्रवेशी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के आदर्श गुरुकुल विद्यालय के नाम से पोटा केबिन खोले गए। जो आगे चलकर रेसिडेंसियल स्कूलों के नाम से परिवर्तित किया गया। इन आश्रमों में बच्चों को आवासीय सुविधा के साथ–साथ शिक्षण की भी व्यवस्था की गई। इसके लिए बारहवीं पास स्थानीय युवकों को अनुदेशकों के रूप में न्यूनतम मानदेय देकर नियुक्ति की गई। जो शिक्षा के साथ–साथ बच्चों को सर्वे कर पोटा केबिन लाने जिम्मेदारी होती है। इन पोटा केबिनों में शिक्षकों में से किसी एक को अधीक्षक बनाया जाता है, जो पूरे संस्था का संचालन की जिम्मेदारी दी जाती है। इन आवासीय विद्यालयों 300 से 500 विद्यार्थी अध्यापन करते हैं। इन विद्यालयों की व्यवस्थाएं ऐसी हैं, कि न तो शौचालय की अच्छी सुविधाएं हैं, न ही स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है, न ही स्वच्छ बिस्तर उपलब्ध हैं, न ही स्वच्छ परिसर, न ही पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, न ही पौष्टिक भोजन नसीब होता है, और न ही अच्छी गुणवत्ता युक्त शिक्षा मिलती है, शिक्षकों के अभाव में किस प्रकार की शिक्षा मिलेगी। जिले के सभी पोटा केबिनों की हालत ऐसी ही है। 300 से अधिक विद्यार्थियों के लिए बिना किसी योग्यता के अधीक्षकों की पदस्थापना की जाती है। जिनको जानकारी के अभाव में बच्चों के साथ आए दिन कुछ न कुछ घटनाएं होती रहती हैं। पोटा केबिनों को हाई स्कूलों में अपग्रेड किया जा चुका है। व्याख्याताओं की पदस्थापना भी की गई है। प्राचार्य भी बनाए गए हैं, किंतु प्राचार्यों का पोटा केबिनों में किसी प्रकार का दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। प्राचार्य जो द्वितीय श्रेणी का अधिकारी भी है, किंतु पोटा केबिन के हाई स्कूल के शाला अनुदान का राशि का आहरण भी नहीं कर सकता। उसका अधिकार भी अधीक्षक के पास होता है। यदि प्राचार्यों को पोटा केबिन के नियंत्रण का अधिकार दिया जाए तो व्यवस्था काफी हद तक सुधार हो सकता है। उन्हें अधिकार इसलिए नहीं दिए जा रहे है, कि मिलने वाली राशि का बंदरबांट रुक जाएगा। यदि पोटा केबिनों में व्यवस्था सुधारनी है तो जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदारी देनी होगी। पूरे राज्य में नई शिक्षा नीति लागू है। किंतु पोटा केबिनों में इसका असर कहीं भी देखने को नहीं मिलता है, एकाध संस्था को छोड़कर सभी पोटा केबिनों में शैक्षणिक गुणवत्ता न के बराबर है। बच्चों को कक्षानुरूप शिक्षा प्राप्त नहीं हो रहा है। कुल मिलकर पोटेकेबिन कमाई का जरिया बनकर रह गया है।

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Author: Deepak Mittal

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