समाजवाद, अहिंसा और लोककल्याण के अग्रदूत श्री श्री 1008 श्री अग्रसेन जी महाराज की 5149वीं जयंती पर विशेष

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Deepak Mittal

निर्मल अग्रवाल ब्यूरो 8959931111

महाराज अग्रसेन का जीवन परिचय

भारत भूमि में समय-समय पर अनेक महापुरुष अवतरित हुए हैं। महाराज अग्रसेन भारतीय सभ्यता के उन चिरस्थायी आदर्शों में से एक हैं, जिन्होंने समाज में समानता, अहिंसा और समुचित वितरण की भावना को जन्म दिया।

युगाब्द से 22 वर्ष पूर्व (ईसापूर्व 3124) द्वापर युग के अंतिम चरण में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतापनगर में सूर्यवंशी भगवान श्रीराम के बेटे कुश की 34वीं पीढ़ी के वंशज क्षत्रिय राजा वल्लभसेन व माता भगवतीदेवी के घर अग्रसेन जी का जन्म हुआ था। 15 वर्ष की आयु में अपने पिता राजा वल्लभसेन के साथ पांडवों की तरफ से कौरवों से महाभारत का युद्ध करते समय 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से राजा वल्लभसेन को वीरगति मिलने से अग्रसेन जी प्रतापनगर के महाराज बनाए गए थे।

नागकुमारी माधवी से विवाह कर उन्होंने द्वापर युग में 7 वर्षों तक प्रतापनगर में राज किया। द्वापर से कलयुग के परिवर्तन पर जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग किया था, तब 22 वर्षीय महाराज श्री अग्रसेन ने वर्तमान हरियाणा के अग्रोहा में सरस्वती नदी के तट पर नए राज्य की स्थापना कर 101 वर्षों तक राज करने के उपरांत कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श करके अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु को शासन सौंपकर तपस्या करने चले गए और वानप्रस्थ आश्रम में तपस्या के दौरान भौतिक शरीर का परित्याग किया। उन्हें व्यापार, कृषि और समानता पर आधारित व्यवस्था लागू करने हेतु याद किया जाता है।

एक बार अकाल पड़ने पर वे वेश बदलकर राज्य भ्रमण के दौरान चार सदस्यों के परिवार में गए। जो भोजन करने ही वाले थे कि अतिथि को देखकर चारों ने अपनी-अपनी थाली से एक अंश निकालकर अतिथि को परोसा। इसी से प्रेरणा लेकर महाराज अग्रसेन ने ‘एक ईंट और एक रुपया’ की नीति से समाज में नवआगंतुकों को आत्मनिर्भर बनाकर सामूहिक सहयोग और सामाजिक सुरक्षा की मिसाल पेश की। उस समय समाज जाति व अस्पृश्यता विहीन था तथा एक कुल से दूसरे कुल में स्वयंवर द्वारा योग्य वर का चयन कर विवाह संपन्न होते थे। क्षत्रिय होते हुए भी उन्होंने यज्ञों में पशु बलि का विरोध करते हुए अहिंसा का मार्ग चुना और राज्य की समृद्धि के लिए हिंसा-रहित अग्रवंश (वैश्य वर्ग) खड़ा किया।

महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 जनपदों (गणराज्य/राज्यांश) में विभाजित किया था और प्रत्येक गणराज्य के प्रशासनिक प्रमुख को उन्होंने अपने पुत्रवत माना था। महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य में लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव भी रखी थी, जहाँ प्रत्येक जनपद से एक-एक प्रतिनिधि लेकर प्रशासन का संचालन होता था। प्रत्येक जनपद के अपने-अपने गुरु थे जो ऋषि थे, वही आगे चलकर अग्रकुल कहलाए और उनके गोत्र उनके ऋषियों से ही बने।

18 गोत्रों की सूची

क्रमांक ,गणराज्य प्रमुख, गोत्र नाम,महर्षि जी का नाम,

1 विभु गर्ग गोत्र महर्षि गर्गाचार्य
2 भीमदेव गोयल गोत्र महर्षि गोभिल
3 शिवजी गोयन गोत्र महर्षि गौतम
4 सिद्धदेव बंसल गोत्र महर्षि वत्स
5 बासुदेव कंसल गोत्र महर्षि कौशिक
6 बालकृष्ण सिंघल गोत्र महर्षि शांडिल्य
7 धर्मंनाम मंगल गोत्र महर्षि मंडव्य
8 अर्जुन जिंदल गोत्र महर्षि जैमिन
9 रणकृत तुंगल गोत्र महर्षि तांड्य
10 गुप्तनाम ऐरन गोत्र महर्षि और्व
11 पुष्पदेव धारण गोत्र महर्षि धौम्य
12 माधोसेन मधुकुल गोत्र महर्षि मुदगल
13 केशवदेव बिंदल गोत्र महर्षि वशिष्ठ
14 भुजमान मित्तल गोत्र महर्षि मैत्रेय
15 कंवलदेव कुच्छल गोत्र महर्षि कश्यप
16 गुणराज नांगल गोत्र महर्षि नगेन्द्र
17 वासगी भंदल गोत्र महर्षि भारद्वाज
18 शिवजीभान तायल गोत्र महर्षि तैलंग

उक्त 18 गोत्र मूल ऋषियों के नामों पर आधारित हैं, जो अग्रवाल समाज की पहचान हैं। विचारणीय प्रश्न यह भी है कि यदि महाराजा श्री अग्रसेन जी के 18 पुत्र थे, तब तो सभी अग्रवाल आपस में पितृकुल से जुड़े भाई-बहन हो जाएंगे तो अग्रवाल आपस में विवाह संबंध कैसे कर सकते हैं। संभव है कि हम सब महाराजा श्री अग्रसेन जी के आदर्शों पर चलने वाले भिन्न-भिन्न जनसमूह से हों। लोकतांत्रिक शासन, न्यायप्रिय नीति, आर्थिक समानता और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएँ हर नागरिक के लिए सुलभ कराने वाले अग्रसेन जी ने अपने समय में प्रजाहित को सर्वोपरि स्थान दिया। महाराज अग्रसेन के नेतृत्व में अग्रोहा राज्य व्यापार, सामाजिक समन्वय, धर्म, न्याय और समृद्धि का केंद्र बन गया था।

महाराज अग्रसेन के नाम से देशभर में अस्पताल, विद्यालय, सामुदायिक भवन, धर्मशालाएँ संचालित हैं, जो उनके लोकहितकारी दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण हैं। उनकी 5100वीं जयंती के पावन अवसर पर 1976 में भारत सरकार द्वारा, 2016 में मालदीव द्वारा तथा 2017 में भारतीय डाक विभाग द्वारा अग्रसेन की बावली पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किए गए हैं। छत्तीसगढ़ सहित अनेक राज्य-सरकारों द्वारा उनके आदर्शों को स्वीकार कर उनके नाम पर प्रतिवर्ष रु. दो लाख से अधिक नगद पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं। महाराज अग्रसेन न सिर्फ एक कालजयी शासक थे, बल्कि समता, उदारता व अहिंसा के ऐसे अनुकरणीय आदर्श हैं, जिनकी प्रेरणा आज भी सामाजिक उत्थान और सद्भाव की धुरी बनी हुई है।

हर वर्ष हम अग्रसेन जयंती मनाते हैं, लेकिन अग्रकुल संस्थापक के इतिहास को अगली पीढ़ी तक नहीं पहुँचा पाते हैं। कार्तिक अमावस्या को दीपावली, फाल्गुन पूर्णिमा को होली, चैत्र शुक्ल तेरस को महावीर जयंती, कार्तिक पूर्णिमा को गुरुनानक जयंती, चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को जन्माष्टमी और आश्विन माह शुक्ल प्रतिपदा को श्री अग्रसेन जयंती इस बात के द्योतक हैं कि हमारे सभी व्रत त्यौहार तिथि आधारित हैं ना कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के दिनांक आधारित। इन्हीं त्रुटियों को दूर करने हेतु देश के जाने-माने हिंदू चिंतक एवं विचारक अग्रकुल के ही सुनील गंगाराम गर्ग द्वारा संपादित व ललित हीरालाल गर्ग के बिलासपुर आवास से हिंदू दैनंदिनी न्यास द्वारा नववर्ष चैत्र प्रतिपदा युगाब्द 5127 के पावन अवसर पर बिलासपुर से विगत पाँच वर्षों से लगातार हिंदू दैनंदिनी प्रकाशित कर अग्रवंश सहित हिंदू समाज को वास्तविकता से अवगत कराने हेतु विश्व में पहली बार हिंदू तिथि को अंकों में लिखने की विधि सहित सरल भाषा में तिथि, व्रत, त्यौहार, ऋतु आदि एकसाथ उपलब्ध कराकर हिंदुत्व के विलुप्त होते सद्गुणों को सहेजने व नई पीढ़ियों को अपने वैभवशाली इतिहास से अवगत कराने हेतु उद्यम किया जा रहा है।

श्री अग्रसेन जी की विशेषताएँ

दो युगों के दृष्टा: द्वापर के अंत से लेकर कलयुग में भी राज।

जाति विहीन समाज: सूर्यवंशी होकर नागवंशी से विवाह।

अहिंसा: पशुबलि/मांसाहार का त्याग कर शाकाहार अपनाया।

वर्ण परिवर्तन: क्षत्रिय वर्ण को त्याग शुद्ध सात्विक वैश्य वर्ण अपनाया।

समाजवाद: समाज से नवआगंतुकों को एक ईंट और एक रुपया दिलवाकर समकक्ष बनाना।

धर्मार्थ कार्य: आमदनी का निश्चित हिस्सा धर्मार्थ समाज को वापस करना।

समाजसेवा: उस दौर में वृक्षारोपण, कुएँ, बावड़ी, धर्मशालाओं का निर्माण।

गोत्र व्यवस्था: 18 पुत्रों को यज्ञ कर 18 ऋषियों के मूल गोत्र दिलवाना।

सर्वाधिक न्यायपूर्ण राज: 7 वर्षों तक द्वापर युग में तथा 101 वर्षों तक कलयुग में कुल 108 वर्षों न्यायपूर्ण राज करने वाले एकमात्र शासक।

उपरोक्त विशेषताओं को ध्यान रखते हुए उनके वंशज (स्टेक होल्डर) होने के नाते आज हमें जाति व्यवस्था का त्याग कर केवल गोत्र उपयोग करना ना केवल ज्यादा प्रासंगिक होगा, अपितु समग्र हिंदू समाज के उत्थान में सहायक होकर पुरुष/महिला के अनुपात की कमी को दूर कर सभी के विवाह संबंध में सहायक भी होगा। उनकी 5149वीं जयंती पर हिंदू समाज में व्याप्त बुराइयों का त्याग कर उपरोक्त महर्षियों के गोत्र उपनाम अपनाकर जाति विहीन समरस समाज बनाकर उनके आदर्शों को अपनाना ही उनके प्रति सही सम्मान होगा। यदि आपके मन में जाति व्यवस्था के अस्तित्व में आने के कारण, अस्पृश्यता के कारण, हिंदुत्व के वैज्ञानिक सद्गुण व काल गणना से संबंधित कोई प्रश्न हो तो निसंकोच संपर्क करें, यथासंभव निराकरण करने का प्रयास किया जाएगा।

विशेष प्रस्तुति

ललित हीरालाल गर्ग
बिलासपुर (छ.ग.)
युगाब्द 5127, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, सोमवार

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Author: Deepak Mittal

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