शिक्षकों-अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ फर्जीवाड़ा, शिकायत करने वाले प्रशिक्षक को ही किया गया टारगेट
प्रशिक्षक चैतराम साहू ने किया भ्रष्टाचार का खुलासा, अब आमरण अनशन करने पर हुई चलताऊ कार्यवाही
निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111
मुंगेली- केंद्र सरकार द्वारा बालिकाओं की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को ध्यान में रखते हुए संचालित रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण योजना का उद्देश्य छात्राओं को जूडो, कराटे, ताइक्वांडो जैसे आत्मरक्षा के गुर सिखाकर उन्हें सशक्त बनाना था। इस योजना के अंतर्गत स्कूलों की बालिकाओं को प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के माध्यम से प्रशिक्षण दिए जाने का प्रावधान है, जिसके लिए प्रति प्रशिक्षक ₹5000 प्रतिमाह के मान से तीन माह का 15000 मानदेय निर्धारित किया गया है।

लेकिन पथरिया विकासखंड में इस योजना का क्रियान्वयन भ्रष्टाचार और कागजी खानापूर्ति का शिकार हो गया। सरगांव कराते स्कूल के प्रशिक्षक चैतराम साहू ने जब इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो मामला सामने आया कि कुछ शिक्षकों और स्कूल प्राचार्य ने मिलकर फर्जी प्रशिक्षण दिखाते हुए लाखों की धोखाधड़ी को अंजाम दिया।



क्या है पूरा मामला?
प्रशिक्षक चैतराम साहू ने जिला प्रशासन को की गई शिकायत में बताया कि पथरिया विकासखंड के कई स्कूलों में जूडो-कराटे का प्रशिक्षण बिना किसी वास्तविक कार्य के केवल कागजों में दर्शाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि शिक्षक राजू निषाद (प्रधानपाठक, शासकीय प्राथमिक शाला तालापारा), मोहन लाल लहरी (सहायक शिक्षक, शासकीय प्राथमिक शाला धमनी) ने दो-दो और देवकुमार प्रधान (सहायक शिक्षक, शासकीय प्राथमिक शाला कान्हरकांपा) ने नौ स्कूलों में प्रशिक्षण देने का दावा करते हुए प्रशिक्षण का मानदेय प्राप्त किया। गौरतलब है कि यह कैसे संभव है कि कोई शिक्षक एक ही समय में दो से नौ स्कूलों में नियमित कक्षाओं के अलावा आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दे? वह भी पूरे तीन महीनों तक? यह बात सामान्य समझ से परे है और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है।
शिकायत पर हुई कार्रवाई—या सिर्फ दिखावा?
जब चैतराम साहू ने इस फर्जीवाड़े की शिकायत की तो शिक्षा विभाग द्वारा जांच के नाम पर कागजी खानापूर्ति की गई। जांच रिपोर्ट में दोषी शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण दिए जाने को ‘सही’ पाया गया और केवल एक वेतनवृद्धि असंचयी रूप से रोकने की औपचारिक कार्रवाई की गई। अन्य दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही हेतु प्रस्ताव नियोक्ता को भेजने की बात कही गई है।
शिकायतकर्ता पर ही हो रहा दबाव
सबसे चिंताजनक बात यह है कि शिकायत करने वाले प्रशिक्षक चैतराम साहू को ही धमकाया जा रहा है। उनके खिलाफ कानूनी नोटिस, धमकियाँ और समझौते का दबाव डाला गया है ताकि वे अपनी शिकायत वापस ले लें। जब उन्होंने कई बार लिखित शिकायत की और सुनवाई नहीं हुई, तो वे परिवार सहित आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर हुए।
सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन
साफ तौर पर यह मामला सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के उल्लंघन की श्रेणी में आता है, जिसके अनुसार कोई शासकीय सेवक अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह नहीं हो सकता। वह सरकारी समय में निजी लाभ हेतु कोई गतिविधि नहीं कर सकता। बिना सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के द्वितीय कार्य नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद संबंधित शिक्षकों से न तो तीन महीने के वेतन और मानदेय की वसूली की गई, न ही उनके खिलाफ विभागीय जांच या एफआईआर दर्ज की गई।
जनता और छात्राओं के हित के लिए सवाल जरूरी
इस योजना का उद्देश्य छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते यह लक्ष्य ही कहीं गुम हो गया। यह एक गंभीर उदाहरण है कि कैसे सरकारी योजनाएं अधिकारियों और शिक्षकों की मिलीभगत से लूट का जरिया बन जाती हैं। प्रश्न यह नहीं है कि दोषी कौन है, प्रश्न यह है कि कार्रवाई कब होगी? क्या ऐसे लोगों पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी?
क्या 59 लाख रुपये की जनता की गाढ़ी कमाई वापस लाई जाएगी?
क्या चैतराम साहू जैसे आम नागरिकों की आवाज को सुना जाएगा?
आम जनता की यही अपेक्षा है कि दोषियों से तीन माह का वेतन व मानदेय की वसूली हो। सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के तहत विभागीय कार्यवाही हो।
एफआईआर दर्ज कर कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाए। शिकायतकर्ता को सुरक्षा और न्याय मिले।
