बिल भुगतान नही करने, कागजात को फेंकते हुए कमर्चारी से की अपशब्दों में बात- कोषालय
निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111
मुंगेली – जिले में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों में इन दिनों गहरा आक्रोश और निराशा व्याप्त है, और इसका कारण कोई और नहीं, बल्कि स्वयं जिला कोषालय अधिकारी दुर्गेश कुमार राजपूत बताए जा रहे हैं। उनके व्यवहार को लेकर लगातार शिकायतें सामने आ रही हैं, जिससे न केवल प्रशासनिक कार्य बाधित हो रहे हैं, बल्कि कार्यालयीन वातावरण भी तनावपूर्ण बना हुआ है।
सूत्रों के अनुसार, जिला कोषालय अधिकारी का व्यवहार अक्सर आक्रामक, अपमानजनक और अमर्यादित होता है। बताया जा रहा है कि जब अन्य विभागों के अधिकारी या कर्मचारी अपने विभागीय बिल लेकर कोषालय कार्यालय पहुंचते हैं, तब कोषालय अधिकार राजपूत उनसे तर्कहीन और कठोर ढंग से व्यवहार करते हैं।
हाल ही में एक घटना में, जब एक अधिकारी संभागीय आदेश के तहत बिल लेकर उनके कार्यालय पहुँचे, तो कोषालय अधिकारी राजपूत ने कार्यालयीन आदेश क्रमांक की मांग की। स्पष्ट रूप से बताया जाने के बाद भी उन्होंने न केवल बिल को अस्वीकार कर दिया, बल्कि कागजात को फेंकते हुए वस्त्र लेखा अधिकारी से भी अपशब्दों में बात की।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कोषालय अधिकारी का यह रवैया कोई नया नहीं है। उनके व्यवहार से अक्सर कार्यालय में तनाव का माहौल बना रहता है। बात-बात पर चिल्लाना, फाइलों को फेंकना, कर्मचारियों को तुच्छ समझना और गुस्से में बड़बड़ाना उनकी आदत बन चुकी है। इससे कार्यालयीन कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है और अधिकारी-कर्मचारी मानसिक रूप से भी परेशान हो रहे हैं।
एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम प्रतिदिन डर के माहौल में काम करते हैं। कब किस बात पर वह नाराज हो जाएं, कहा नहीं जा सकता। कई बार तो ऐसा लगता है कि वे हमें इंसान समझते ही नहीं।” इस तरह का व्यवहार केवल विभागीय कर्मचारियों तक सीमित नहीं है। आम नागरिक जो भुगतान संबंधी कार्यों हेतु कोषालय कार्यालय का रुख करते हैं, वे भी इस व्यवहार का शिकार होते हैं।
कई बार वृद्ध नागरिक या ग्रामीण क्षेत्र से आए लोगों को बिल संबंधी जानकारियां मांगने पर डांटकर भगा दिया जाता है, जिससे सरकारी कार्यों के प्रति जनता में विश्वास घटता जा रहा है। प्रशासनिक नियमों के अनुसार, किसी भी अधिकारी को मर्यादित और सहयोगपूर्ण व्यवहार करना अनिवार्य होता है। यदि शिकायतें निरंतर आती हैं तो संबंधित अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि जिला प्रशासन इस प्रकरण को गंभीरता से लेकर उचित जांच की व्यवस्था करे। समाज और प्रशासन में शिष्टाचार एवं अनुशासन की मिसाल पेश करने की जिम्मेदारी उच्च पदस्थ अधिकारियों की होती है। ऐसे में यदि कोई अधिकारी स्वयं ही मर्यादा लांघे, तो यह पूरी प्रणाली के लिए चिंताजनक संकेत है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस मामले पर क्या रुख अपनाता है, और क्या इस व्यवहार से त्रस्त कर्मचारियों को राहत मिल पाएगी।
