दुनिया के सबसे बड़े मंच में एक बड़ा हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला, जिसने हर किसी को चौंका दिया है। इन दिनों दो लोगों की बातें संयुक्त राष्ट्र में सुर्खियां बन रही है। सोचिए जरा यूनाइटेड नेशन के मंच पर एक तरफ खड़े नजर आए तुर्किए के प्रतिनिधि तो दूसरी तरफ भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर मौजूद थे।
ये सिर्फ तुर्किए तक सीमित नहीं रहा बल्कि सऊदी अरब भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आया और यहीं से भारत की दोस्ती और कूटनीति में एक ऐसा नया मोड़ आया जिसने सभी को चौंका दिया। तुर्किए ने कहा कि भारत अभी विटो पावर के लायक नहीं है। फिर क्या था जयशंकर ने न सिर्फ मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि न्यूयॉर्क में ऐसा कूटनीतिक चक्रव्यूह रच दिया कि सबकी बोलती बंद हो गई।
एस जयशंकर ने केवल दो दिनों में 12 देशों के विदेश मंत्रियों को अपने पाले में खींच लिया। दरअसल, काफी समय से ये बात चल रही है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक परमानेंट सीट मिलनी चाहिए। माहौल फिलहाल बिल्कुल शांत था। लेकिन इस शांत पड़े माहौल की आग में घी डालने का काम खुद यूएन के महासचिव एंटेनियो गुटारेस ने किया। उन्होंने साफ कह दिया कि 1947 के पुराने पड़ चुकी व्यवस्था को बदला जाए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार के बहुत समर्थक हैं, जिसमें भारत बहुपक्षीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण आवाज के रूप में उभर रहा है।
जैसे ही भारत की स्थायी सदस्यता की बात आगे बढ़ी तो तुर्किए ने सीधे सीधे तो नहीं लेकिन एक सोची समझी चाल के तहत इसका विरोध करना शुरू कर दिया। तुर्कीए के राष्ट्रपति रिचब तैयब एर्दोगान ने यूएन के 80 वें सत्र के दौरान अपने भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठा कर पाकिस्तान को खुश करने की कोशिश की। उन्होंने भारत को सलाह देते हुए कहा कि कश्मीर का मुद्दा यूएन के प्रस्तावों के अनुसार सुलझाया जाना चाहिए। इसके बाद जयशंकर ने तुर्किए को वो आइना दिखाया जिसे वो शायद ही कभी देखना चाहता होगा। उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि तुर्किए में महिलाओं के अधिकारों को लेकर गंभीर चुनौतियां रही हैं। उन्होंने साफ कहा कि दूसरों पर ऊंगली उठाने से पहले तुर्किए को खुद के गिरेबान में झांक लेना चाहिए।
जयशंकर ने एक ऐसी तुलना कर दी, जिससे पूरे हॉल में सन्नाटा पसर गया। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि तुर्किए के दौर में अर्मेनियाई, ग्रीक औऱ दूसरे ईसाई समुदायों को बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। ये एक कूटनीतिक रणनीति थी, जिसने तुर्किए के सारे आरोपों की हवा निकाल दी। अंत में जयशंकर ने तुर्किए के प्रतिनिधि को नसीहत देते हुए कहा कि आपका काम अपने देश के मुद्दे उठाना है, दूसरों पर कीचड़ उछालना नहीं।

Author: Deepak Mittal
