एक रुपये का सिक्का बनाने में सरकार को 1.11 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि हर सिक्के को बनाने पर सरकार को करीब 11 पैसे का घाटा होता है.
सिर्फ 1 रुपये का सिक्का ही नहीं, बाकी सिक्कों की लागत भी सरकार के लिए पूरी तरह फायदे का सौदा नहीं है.
- 2 रुपये का सिक्का: लागत 1.28 रुपये
- 5 रुपये का सिक्का: लागत 3.69 रुपये
- 10 रुपये का सिक्का: लागत 5.54 रुपये
ये सभी सिक्के भारत सरकार की टकसालों में बनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से मुंबई और हैदराबाद की टकसालें शामिल हैं.
1 रुपये का सिक्का स्टेनलेस स्टील से बनता है. इसका वजन 3.76 ग्राम, व्यास 21.93 मिमी और मोटाई 1.45 मिमी होती है. यह टिकाऊ होता है और सालों तक चलता है. इसी वजह से सरकार इसे घाटे के बावजूद चलन में बनाए रखती है.
सिक्कों की तुलना में नोटों की छपाई सरकार के लिए कहीं अधिक लाभदायक है. 1 रुपये के नोट सहित सभी सिक्कों की छपाई सरकार के अधीन होती है, जबकि 2 से 500 रुपये तक के नोटों की छपाई की जिम्मेदारी RBI की होती है.
- 100 रुपये के 1000 नोट छापने पर लागत: 1770 रुपये (1.77 प्रति नोट)
- 200 रुपये के 1000 नोट: 2370 रुपये (2.37 प्रति नोट)
- 500 रुपये के 1000 नोट: 2290 रुपये (2.29 प्रति नोट)
इसका मतलब यह कि एक 500 रुपये का नोट छापने में महज 2.29 रुपये लगते हैं, लेकिन उसका मूल्य 500 रुपये होता है.
हालांकि, कुछ सिक्कों पर सरकार को घाटा होता है, फिर भी वे बनाए जाते हैं. इसका कारण यह है कि सिक्के लंबे समय तक चलते हैं और मुद्रा प्रणाली में स्थिरता बनाए रखते हैं. वहीं नोटों को कुछ वर्षों बाद बदलना पड़ता है. इससे यह साफ होता है कि मुद्रा निर्माण सिर्फ लागत पर नहीं, बल्कि रणनीतिक और व्यावसायिक सोच के आधार पर होता है.
मुद्रा प्रणाली का यह गणित चौंकाने वाला जरूर है, लेकिन इसके पीछे सोच दीर्घकालिक और रणनीतिक है. अगली बार जब आप 1 रुपये का सिक्का देखें, तो यह जानकर मुस्कुरा सकते हैं कि वह सरकार को उससे महंगा पड़ा है, जितना वह दिखता है.
Author: Deepak Mittal









