जशपुर की किलकिला नदी में खनन नहीं, लोकतंत्र का हनन हो रहा है और प्रशासन गूँगा-बहरा तमाशबीन है…!

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शैलेश शर्मा 9406308437नवभारत टाइम्स 24×7.in जिला ब्यूरो रायगढ़

*रायगढ़ * जिले के किलकिला में प्रवाहित मांड नदी अब कोई जलधारा नहीं यह सत्ता, अपराध और चुप्पी का रेत-पासपोर्ट बन चुकी है। जहाँ हर ट्रक बालू नहीं, जनता के हक, संविधान के अनुच्छेद और पत्रकारिता की अस्मिता को कुचलकर ले जाता है।

यहाँ कानून नहीं चलता -लोडेड ट्रक चलता है। अफसर काम नहीं करते “हम देख रहे हैं” का रटा हुआ जवाब पढ़ते हैं। और पंचायतें जनता की नहीं, माफिया की डिप्टी एजेंसी बन चुकी हैं।

पत्रकारों को धमकी का “रिवॉर्ड” क्योंकि उन्होंने सच दिखाने की हिम्मत की :

  • यहाँ अगर कोई कैमरा उठाए, तो जवाब में जेसीबी वाला कॉल आता है।
  • यहाँ अगर कोई कलम चले, तो माफिया के गुर्गे गाली लेकर सामने खड़े हो जाते हैं।

प्रशासन क्या करता है?“हम जाँच करेंगे” मतलब जितनी देर में नदी गायब हो जाए, उतनी देर तक फ़ाइल खुली रहे।

गांव के पंचायत प्रतिनिधि अब ‘रेत-एजेंट’ बन गए हैं : सरपंच अब “श्री बालू ट्रांसपोर्ट कंपनी लिमिटेड” के ब्रांड एम्बेसडर हैं। पंच अब ‘GPS’ नहीं, JCB से लोकेशन बताते हैं। और पंचायत भवन अब जनसेवा केंद्र नहीं, रेत बुकिंग कार्यालय है – जहाँ से तय होता है कि कौन ट्रक किस गली से निकलेगा, और कौन पत्रकार किस गली में घुसे तो धमकी मिलेगी।

प्रशासन – संवैधानिक शवयात्रा का मूक सहभागी :

  • खनिज विभाग: “हमें जानकारी नहीं…”
  • पुलिस: “हम देख रहे हैं…”
  • राजस्व विभाग: “अब तक कोई शिकायत नहीं आई…”

तो जनता पूछ रही है : आपके कान में रेत भर गई है क्या? या सत्ता की कुर्सी इतनी आरामदायक हो गई है कि आँखों का काम भी पेट कर रहा है?

पर्यावरणीय विनाश , बोनस में मिलेगा : अगर आपने एक नदी को बेच डाला, तो उसके बदले में क्या मिलेगा?

  • सूखी नहरें
  • बर्बाद खेती
  • पलायन करता युवा और “विकास के नाम पर” उजड़े गाँव

यह कोई भविष्यवाणी नहीं, बल्कि वही रेत आधारित विकास मॉडल है, जिसे छत्तीसगढ़ के कई इलाकों ने पहले भुगता है, अब जशपुर भुगत रहा है।

अब जनता बोलेगी :

“बस बहुत हुआ!” किलकिला में सिर्फ बालू नहीं निकलेगा, अब आंदोलन निकलेगा।

  • FIR दर्ज नहीं हुई? तो धरना दिया जाएगा
  • माफिया को संरक्षण मिला? तो सड़क रोकी जाएगी
  • पत्रकारों को धमकी? तो कलेक्टोरेट घेराव तय है

क्योंकि जब लोकतंत्र मरता है, तो जनता चुप नहीं रहती – वह जनसुनवाई नहीं, जनक्रांति करती है।

आख़िरी सवाल प्रशासन से : आप कब जागेंगे? जब नदी में रेत नहीं, सिर्फ लाशें तैरेंगी? या जब पत्रकार की चुप्पी को आप सुरक्षा मान लेंगे?

(अगली रिपोर्ट में “राजनीतिक संरक्षण और बालू माफिया का गठजोड़ : किस नेता के किस रिश्तेदार का नाम रेत में छुपा है???”)

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Author: Deepak Mittal

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