प्राचीन धरोहर के अस्तित्व पर संकट — पुरातत्व और वन विभाग की अनदेखी से मदकू द्वीप की पहचान खतरे में

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निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111

सरगांव -छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप मदकू आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। वर्ष 2011 में हुए पुरातात्विक उत्खनन से जब यहाँ एक ही पीठी पर निर्मित अठारह प्राचीन मंदिरों का समूह सामने आया, तब इस द्वीप की ख्याति पूरे भारत में फैल गई थी। यही नहीं, उत्खनन से प्राप्त गरूड़ारूढ़ भगवान लक्ष्मीनारायण, भगवान उमामहेश्वर और द्वादश स्मार्त लिंग जैसी मूर्तियाँ इस क्षेत्र की धार्मिक-सांस्कृतिक समन्वय परंपरा की सशक्त मिसाल बनीं।

परंतु आज वही ऐतिहासिक धरोहरें पुरातत्व विभाग की लापरवाही और वन विभाग की निष्क्रियता के कारण धीरे-धीरे नष्ट होने के कगार पर हैं। कहने को संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से दो केयर टेकरों की नियुक्ति की गई है, जिन्हें नियमित वेतन भी मिलता है। लेकिन स्थल की निगरानी और देखभाल का अभाव इतना गंभीर है कि कई मंदिरों के शिखर, फलक, कलश और आमलक जैसी कलात्मक संरचनाएँ गिरकर टूट चुकी हैं।


स्थानीय निवासियों का कहना है कि यदि केयर टेकर अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते, तो मंदिरों की वर्तमान स्थिति इतनी दयनीय न होती।
द्वीप क्षेत्र में बंदरों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाने से भी समस्या और गंभीर हो गई है। स्थानीय लोगों के अनुसार ये बंदर मंदिरों की छतों और शिखरों पर लगातार उछलकूद मचाते हैं, जिससे प्राचीन पत्थर दरकने लगे हैं।


विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वन विभाग इन बंदरों को किसी अन्य उपयुक्त क्षेत्र में स्थानांतरित कर दे, तो धरोहरों की क्षति रोकी जा सकती है।


मदकू द्वीप का पूरा क्षेत्र वन विभाग के अधीन है, जो राजस्व अभिलेख में “छोटे-बड़े छाड़ के जंगल” के रूप में दर्ज है। इसके बावजूद, जब भी द्वीप की सुरक्षा या संरक्षा की बात उठती है, तो विभाग अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए राजस्व और पुलिस विभाग का हवाला देकर पीछे हट जाता है।
वहीं, जब किसी निर्माण कार्य या परियोजना के ठेके की बात आती है, तो वही विभाग क्रियान्वयन एजेंसी बनकर सक्रिय हो जाता है। स्थानीय सामाजिक संगठनों ने इस दोहरी नीति पर गहरी नाराज़गी व्यक्त की है।

जनपद पंचायत पथरिया के सभापति मनीष साहू ने कहा— “केयर टेकरों और पुरातत्व विभाग की लापरवाही के कारण प्राचीन धरोहरें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले कुछ वर्षों में इनकी पहचान मिट जाएगी।”लगभग तीन दशकों से श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप सेवा समिति इस क्षेत्र की पुरातात्विक धरोहर, पर्यावरण और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिए कार्यरत है। समिति के पदाधिकारियों ने शासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

समिति ने सुझाव दिया है कि— मंदिर समूह के चारों ओर तार-जाली संरचना बनाई जाए।
द्वीप क्षेत्र में बंदरों की संख्या नियंत्रित करने हेतु वन विभाग ठोस कदम उठाए, और पुरातत्व विभाग संरक्षण के तकनीकी उपाय तत्काल प्रारंभ करे। समिति का कहना है कि यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह प्राचीन धरोहर अगली पीढ़ी के लिए सिर्फ पत्थरों का ढेर बनकर रह जाएगी।

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Author: Deepak Mittal

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