दल्लीराजहरा।छत्तीसगढ़ की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं का प्रतीक सुआ नृत्य आज भी समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। इसी सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय हर्राठेमा में सुआ नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इस आयोजन में विद्यालय की 40 छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और पारंपरिक लोक धुनों पर मनमोहक प्रस्तुतियाँ दीं।

लोक संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन
कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती की विधिवत पूजा-अर्चना के साथ की गई। छात्राओं ने पारंपरिक वेशभूषा में बांस की टोकरी में धान भरकर उस पर तोते की प्रतिमा रखकर समूह में नृत्य प्रस्तुत किया। चारों ओर ताल-लय और पारंपरिक गीतों की गूंज ने वातावरण को आनंदमय बना दिया।
सुआ नृत्य: भावना और प्रकृति का संगम
विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य सी. एल. कलिहारी ने बताया कि सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि सामाजिक समरसता, भावनाओं की अभिव्यक्ति और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। महिलाएं दीपावली के पावन पर्व के अवसर पर समूह में इस नृत्य को करती हैं, जिसमें तोते के माध्यम से अपनी भावनाओं और लोक कथाओं को अभिव्यक्त करती हैं।
प्रतिभा का सम्मान
प्रतियोगिता में मुल्ले ग्रुप की छात्राओं — खुशबू, गीतिका, ट्विंकल, माधुरी, तन्नू, उमेश्वरी, पायल और संजना — ने प्रथम स्थान प्राप्त कर सभी का मन मोह लिया। विद्यालय प्रबंधन की ओर से उन्हें पुरस्कृत किया गया।

सहयोग से सजी सफलता
कार्यक्रम के सफल आयोजन में शिक्षकों द्रौपदी सिंह, रेणुका यादव, लिखेंद्र सिंहा, प्रमोद अवस्थी, शिव पटेल, ममता नुरुटी और रविंद्र का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन लता ठाकुर ने कुशलता से किया।
संस्कृति का संदेश
सुआ नृत्य जैसी परंपराएं न केवल हमारी जड़ों से जोड़ती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देती हैं कि संस्कृति केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत जीवनशैली है। हर्राठेमा विद्यालय का यह आयोजन इस बात का उदाहरण बना कि शिक्षा के साथ संस्कृति का संरक्षण भी समान रूप से आवश्यक है।


Author: Deepak Mittal
