सात लोगों के जख्मी होने के बाद जागा प्रशासन

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Deepak Mittal

रतलाम से इमरान खान की विशेष रिपोर्ट

रतलाम :  यहां का हाल वही पुराना है, प्रशासन हादसे के बाद ही हरकत में आता है। विस्फोट हो तो गैस और पटाखों के गोदामों की तलाशी, किसी राज्य में स्कूल की छत गिरकर बच्चों की जान ले ले तो स्कूल-आंगनवाड़ियों की जांच, जहरीली शराब से मौतें हों तो अवैध ठिकानों पर दबिश, झोलाछाप डॉक्टर मरीज मार दें तो धरपकड़, आवारा पशु टक्कर मार दें तो बाड़ों पर छापेमारी, कुत्तों के हमले हों तो बंध्याकरण योजना  सब कुछ हादसे के बाद।

अब यही सिलसिला चाइनीज मांझे के मामले में भी। सात लोग गले और अंगुलियां कटने की घटनाओं के शिकार हुए, तब जाकर प्रशासन को होश आया। रक्षाबंधन से महज एक दिन पहले मांझा बेचने पर रोक का आदेश निकाला गया। लेकिन तब तक पतंग व्यापारी थोक में स्टॉक भर चुके थे। आदेश का पालन करवाना उपखंड अधिकारियों की जिम्मेदारी थी, जो वे समय रहते निभा ही नहीं पाए।

शहर में एसडीएम की स्थिति तो “8 पीएम, नो एसडीएम” जैसी है

आदेश-निर्देश को हल्के में लेना, और सिर्फ वही लागू करना जिनसे ‘लक्ष्मी प्रसन्न’ हों। असल समस्या यह है कि रतलाम में अफसरों का अदला-बदली का खेल बंद नहीं होता  कल का तहसीलदार आज एसडीएम, फिर एडीएम और कल को डीएम बनकर यहीं लौट आता है। पुलिस विभाग में भी यही चक्र।

इस दोहराव से न सुशासन की नीति काम करती है, न अपराध रुकते हैं। जिला, नगर निगम और पुलिस महकमे में ऐसे अफसर भरे पड़े हैं, जिनके बड़े अपराधियों, भूमाफियाओं और विवादास्पद कारोबारियों से गहरे रिश्ते हैं। ऐसे में शासन के आदेशों का ‘ईमानदारी से पालन करने की उम्मीद बेमानी है।

इन अधिकारियों को यहीं टिकाए रखने में कुछ नेता भी सक्रिय रहते हैं। हाल ही में एक महिला पुलिसकर्मी को लेकर हुए विवाद में, एक वरिष्ठ नेता की टिप्पणी को ‘जिलाध्यक्ष की बहन से बदतमीजी’ बताकर खबर बना दी गई, जबकि असलियत कुछ और थी। यहां नेताओं-अधिकारियों की नजदीकी में जनता का हित अक्सर सबसे पीछे रह जाता है।

जिला, निगम, पुलिस, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में बैठे अफसर जनता से ज्यादा उन नेताओं के हित साधते हैं, जो उन्हें रतलाम में टिकाए रखते हैं। नतीजा  जिम्मेदार लोग हादसे का इंतजार करते हैं, और जनता भरोसा खोती जाती है।

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Author: Deepak Mittal

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