(जे के मिश्रा ) कोरबा—जिले के बरपाली तहसील में तहसीलदार द्वारा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने की जल्दबाजी में की गई कार्रवाई पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। ग्राम कनकी निवासी नूतन राजवाड़े को 20 सितंबर की शाम को उनके वाट्सएप पर सरकारी जमीन से बेदखली का नोटिस भेजा गया, और अगले ही दिन सुबह-सुबह बिना उचित समय दिए कार्रवाई शुरू कर दी गई।
कोर्ट ने जताई नाराजगी, कहा- यह तो मनमानी है
नूतन राजवाड़े द्वारा हाई कोर्ट में दाखिल याचिका के बाद कोर्ट ने इस मामले में तत्काल स्पेशल बेंच बैठाने का आदेश दिया। जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की अध्यक्षता में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि तहसीलदार की कार्रवाई तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए मनमानी प्रतीत होती है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए अतिक्रमण की कार्रवाई पर रोक लगा दी और तहसीलदार को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।
नोटिस और कार्रवाई में जल्दबाजी
नूतन राजवाड़े के वकील ने कोर्ट को बताया कि 20 सितंबर की शाम को नूतन को सरकारी जमीन से बेदखली का नोटिस व्हाट्सएप पर भेजा गया था, जिसमें कब्जा हटाने के लिए महज कुछ घंटों का ही समय दिया गया था। अगले ही दिन सुबह तहसीलदार अतिक्रमण हटाने पहुंच गए। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए कहा कि यह पूरी प्रक्रिया कानून के विपरीत और जल्दबाजी में की गई।
कोर्ट ने आदेश दिया यथास्थिति बनाए रखने का
मामले की गंभीरता को देखते हुए, हाई कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता के जमीन पर फिलहाल कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी और अगली सुनवाई तक कोई भी नया कदम उठाने से रोक दिया गया है।
याचिकाकर्ता को मिली जमीन के बदले में दी गई थी भूमि
कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी तर्क दिया कि जिस जमीन पर कब्जा हटाने की कार्रवाई की जा रही है, वह वास्तव में याचिकाकर्ता को उनके स्वामित्व वाली भूमि के बदले में दी गई थी। इसके बावजूद, तहसीलदार ने बेदखली का नोटिस भेजा और कब्जा हटाने की जल्दबाजी में कानून का पालन नहीं किया।
तहसीलदार को कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश
कोर्ट ने तहसीलदार बरपाली को 25 सितंबर, सोमवार को व्यक्तिगत रूप से हाई कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। अदालत ने इस मामले में पूरी जांच के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लेने का संकेत दिया है।
यह मामला सरकारी जमीन और अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में तहसीलदार की मनमानी को उजागर करता है, जहां उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।