पिछले एक दशक के आंकड़े उठाकर देखें तो पता चलता है कि भारत में कई प्रकार की क्रॉनिक बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। कम उम्र में ही लोगों को डायबिटीज, हृदय रोग और मेटाबॉलिज्म से संबंधित कई प्रकार की बीमारियां घेरती जा रही हैं जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की मौत भी हो जाती है।
हाल के वर्षों में हार्ट अटैक से हुई मौतों की खबरें सुर्खियों में हैं, 20 से भी कम उम्र के लोगों में इसके मामले देखे जा रहे हैं। इसको लेकर एक रिपोर्ट में कई नई बातें सामने आई हैं।
एम्स के विशेषज्ञों की टीम ने चेताया है कि बॉडी बनाने की कोशिश में लगे लोग जिस प्रकार से स्टेरॉयड का बेतहाशा सेवन कर रहे हैं इसने न सिर्फ शरीर पर कई प्रकार का नकारात्मक असर हो रहा है बल्कि इसने युवाओं में हार्ट अटैक के खतरे को भी काफी बढ़ा दिया है। शरीर को आकर्षक बनाने की ये धुन सेहत के लिए गंभीर साबित होती जा रही है।
स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल बहुत नुकसानदायक
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, शरीर की बनावट को आकर्षक बनाने की चाह में देश के युवा स्टेरॉयड्स का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उनमें हड्डियों के गलने, हार्मोनल असंतुलन और हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) दिल्ली के वरिष्ठ डॉक्टरों ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट करार देते हुए तुरंत रोकथाम की मांग की है।
जिम जाने वाले लोग बरतें सावधानी
भारतीय महानगरों और छोटे शहरों में जिम जाने वाले युवाओं के बीच ‘मसल मास’ और ‘कट फिजिक’ पाने की होड़ में स्टेरॉयड्स का चलन तेजी से बढ़ा है। फिटनेस ट्रेनर्स और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स द्वारा गुमराह किए गए कई युवा ऐनाबोलिक स्टेरॉयड्स और परफॉर्मेंस एनहैंसिंग ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं, जिनके दीर्घकालिक दुष्प्रभाव जानलेवा हैं। इन खतरनाक स्टेरॉयड्स पर सरकार की निगरानी बेहद ढीली है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
एम्स दिल्ली के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने चेताया कि भारत में हर महीने स्टेरॉयड से हड्डियों के गलने के दर्जनों मामले सामने आ रहे हैं। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश मल्होत्रा के अनुसार, 25-30 वर्ष के युवा जो फिटनेस के नाम पर स्टेरॉयड्स ले रहे हैं, वे 40 साल की उम्र से पहले ही हिप रिप्लेसमेंट जैसी सर्जरी के लिए मजबूर हो रहे हैं।
एम्स के डॉ. निखिल तिवारी का कहना है, लोग समझ नहीं पा रहे कि ये उनके बोन मैरो को डैमेज कर रहे हैं। अगर जागरूकता नहीं बढ़ाई गई तो अगले 5 वर्षों में भारत में यंग बोन डिजीज (कम उम्र में हड्डियों के क्षय) एक महामारी बन सकती है।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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Author: Deepak Mittal
