दुर्ग। छत्तीसगढ़ बनने के 25 साल हो गए हैं, लेकिन प्रदेश के ग्रामीण दुर्ग विधानसभा क्षेत्र के गाँव रिसामा में एक गरीब परिवार आज भी अंधेरे में जीने को मजबूर है। मामला केवल 600 रुपये के बिजली बिल का है। पति की मृत्यु के बाद महिला अपने दो बच्चों के साथ घर की बिजली नहीं जमा कर सकी, और बिजली काट दी गई।
महिला अपनी बड़ी बेटी की पढ़ाई पूरी नहीं करवा पाई। बेटी केवल 11वीं तक पढ़ पाई और अब घर पर ही रह रही है। छोटे बेटे की तबीयत भी ठीक नहीं है। महिला मजदूरी कर दोनों बच्चों का पालन-पोषण कर रही है। दिन में थोड़ी रौशनी तो है, लेकिन शाम होते ही अंधेरा घर को घेर लेता है।
इस परिवार ने कई बार जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, लेकिन अब तक कोई सार्थक मदद नहीं मिली। गाँव की बड़ी आबादी के बीच सिर्फ एक परिवार की पीड़ा किसी ने महसूस नहीं की।
निषाद परिवार के तीन सदस्य हर शाम दूसरों के घरों की रोशनी देखकर मन ही मन दुखी होते हैं। सवाल उठता है—क्या सिर्फ 600 रुपये की वजह से एक परिवार को अंधेरे में रखा जाना उचित है? और क्या सरकार इसे ठीक करने में सचमुच मदद नहीं कर सकती?

Author: Deepak Mittal
