
आलेख डॉ. नीलकमल गर्ग सीनियर एडवोकेट हाईकोर्ट, छ.ग./ म. प्र. /
बिलासपुर : प्रधानमंत्री आवास योजना हो या कोई भी योजना। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या जनता, किसकी बात सही, खोजना।। प्रधानमंत्री आवास योजना के विज्ञापन में 18 लाख गरीब लोगों को निशुल्क आवास दिए जाने को, सचित्र प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के फोटो के साथ छ. ग. में विज्ञापित किया गया है।
बिलासपुर नगर निगम के द्वारा सितंबर 24 में , प्रधानमंत्री आवास योजना में, गरीब किरायेदारों के लिए, आवासों के आबंटन के लिए, मंगाए गए आवेदन पत्रों में, शहर के तीन जगह पर, उपलब्ध आवासों के लिए वसूली जाने वाली राशियों को भी उल्लिखित कर, विज्ञापित किया गया है।

जिसमें राजकिशोर नगर के लिए 3,25, 000, अशोक नगर सरकंडा हेतु 3,39, 000, तथा नूतन चौक बिलासपुर के लिए 3,87, 000 समान 10 किस्तों में, 10 माह में वसूल करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही आवेदन पत्रों के फार्म ₹100 प्रति नग, प्रति एरिया के लिए अर्थात तीन एरिया के लिए तीन अलग-अलग फार्म एवं सहपत्र अलग- अलग जमा करने का प्रावधान किया गया है।
सहपत्रों को बनवाने के लिए लगभग 3000 रुपए का खर्च आता है। तीन जगह आवेदन पत्र, लॉटरी सिस्टम से आवंटन होने वाले आवासों की संख्या भी स्पष्ट नहीं दर्शाई गई है। जानकारी पूछने पर बताया गया कि आप उपरोक्त क्रम अनुसार 87, 27, 11 आवास मात्र हैं। जिनके लिए हजारों गरीबों की भीड़ आवेदन पत्र जमा करने हेतु लगी रही। आवेदन पत्रों में ओरिजिनल दस्तावेज की मांग कर, जमा करवाया जाना भी गलत है।

क्योंकि जिन्हें आवास नहीं मिल पाएंगे, उनके तो ओरिजिनल किराएदारी का एग्रीमेंट स्टैंप पेपर, शपथ पत्र स्टांप पेपर, को जो लगभग ₹ 600 में बनवाए जा रहे थे, जिसमें एग्रीमेंट किरायानामा तो ओरिजिनल कई जगह व्यक्ति के आईडी व अन्य सबूत बतौर जरूरत पड़ता है, जो गया आवेदन पत्रों के साथ। इस तरह गरीब जनता को शोषण परक, ठगा और छला गया है।

इसके पहले प्रधानमंत्री आवास योजना, जिसमें जिसकी जमीन थी, उसी पर आवास बनाने हेतु पहले 1,20,000 बाद में 2,50,000 दिए जाने का प्रावधान किया गया था, किंतु कमीशन खोरी, घूसखोरी, वाले अधिकारी कर्मचारी वर्ग यह दलील देकर कह रहा था कि लोग आवास बनवाते नहीं हैं, पैसा खा जाते हैं। इसलिए ईट, रेत, गिट्टी, सीमेंट, सब घटिया किस्म का एवं निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में स्वयं सप्लाई, हितग्राहियों को करते थे तथा मजदूरी की राशि, जो नगदी में भुगतान की जाती है, को देने के बजाय, दी ही नहीं जाती थी ।
ऐसा ही हश्र प्रधानमंत्री शौचालय योजना का भी हुआ है। जिससे आंकड़ों में 11 करोड़ शौचालय जरूर बने हैं शासकीय रिकॉर्ड में। वास्तव में बनने की संख्या जनता ही जानती है।

ऐसा ही एक नेशन, एक राशन योजना की दुर्गति का भी हुआ है। मध्य प्रदेश से अलग होकर बने छत्तीसगढ़ के राशनकार्ड पर मध्य प्रदेश में ही सामग्री नहीं दी जाती है, इनकार कर दिया जाता है, दूसरे राज्यों में भी यही हालत है, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु तक में राशन की सामग्री नहीं दिया जाता है। बल्कि छ.ग. की तुलना में इन दूसरे राज्यों में तो राशन दुकान खोलने का कोई दिन व समय, ही नहीं है, पूरे माह में अनिश्चित रहता है। जिससे कभी कभार एक-दो दिन खुलने वाली सभी राशन दुकानों से 90 – 95 प्रतिशत हितग्राहियों को सामग्री नहीं मिलती देखी गई है। ब्लैक में सब बिक जा रहा है । बिलासपुर में ही एक दुकान के राशन कार्ड पर दूसरे मोहल्ले की राशन दुकान वाले ने सामग्री देने से मना कर दिया था।
छत्तीसगढ़ के बने या दूसरे राज्यों में बने आधार कार्डों को कर्नाटक व दक्षिणी राज्यों में मान्य नहीं करते देखा, पाया गया है।
प्रत्येक सरकार अपने विकास को अंतिम छोर के गरीब व्यक्ति तक पहुंचाने की बात 77 सालों से करती आ रही है किंतु वह अंतिम व्यक्ति तो क्या, बीच के व्यक्ति तक ही, शासकीय योजनाओं के पहुंचने का ओरिजिनल, धरातलीय, वास्तविक, सतत निगरानी का प्रयास एवं लागू करवाने में सरकारे असमर्थ हैं। वह केवल ए.सी. में बैठकर कागजों पर नीति निर्माण, नीति निर्धारण कर अपने कर्तव्य बोध एवं दायित्व बोध से मुक्त समझकर, इतिश्री मानकर, आंकड़ों से संतुष्ट होते रहते हैं।
जबकि अधिकारी कर्मचारी हर एक योजना का विकल्प ढूंढकर, उसे पलीता लगाकर, स्वयं की कमाई में, बदल देते हैं। कागजों में एकदम सही पालन करवाते हुए दर्शाया जाता है। यदि यह सही होता, तो वह अंतिम तो क्या, बीच के गरीब व्यक्ति का ही जीवन स्तर सुधर गया होता? 77 साल बाद अंतिम गरीब व्यक्ति तक विकास योजनाओं के लाभ पहुंचाने का गाना, गाना बंद हो गया होता? अधिकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर सरकारों का वास्तविक नियंत्रण नहीं है। जिससे यह कुकुरमुत्तों की तरह फैलता, बढ़ता ही जा रहा है।
आयुष्मान भारत योजना में 5 लाख तक के इलाज की भ्रमात्मक एवं छलात्मक कहानी है। उसी प्रकार जिस प्रकार 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन, खाद्यान्न वितरण का वास्तविक हाल है। मोदी की ऋण योजनाएं, जिनको बैंक वालों ने पलीता लगा दिया है। हद तो तब है जब व्यापारियों ने देशभर में भारतीय मुद्रा के विभिन्न सिक्कों को जनता से लेना ही बंद कर रखा है।
पर सरकारी एवं उनके पालनकर्ताओं को पता ही नहीं है? वास्तव में पता नहीं है? जब वास्तव में धरातल पर पता करने जाएं, तब ना वास्तव में पता हो? और सबको पता होने के बाद भी किसी ने क्या कर लिया? यह देश, का भ्रष्टाचार, धृतराष्ट्र और भीष्म का है, उनके वंशजों का है, उनकी अग्रिम पीढीयों का है।। इस देश के भ्रष्टाचार को परिवार वालों ने पनपाया है और बिन परिवार वाले प्रधान मंत्री नहीं मिटा पाए, तो ब्रह्मा भी नहीं मिटा सकते है?
