101 वर्ष के लेफ्टिनेंट आर. माधवन पिल्लई: आज़ाद हिंद फ़ौज के अंतिम योद्धा को राष्ट्र देता सलाम
— नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साहस और स्वतंत्रता के जज़्बे की जीवंत मिसाल
नई दिल्ली।
भारत की आज़ादी की कहानी केवल इतिहास की किताबों में नहीं बल्कि उन जीवित योद्धाओं में भी संजोई गई है, जिन्होंने अपने जीवन को देश की आज़ादी के लिए समर्पित किया। ऐसे ही वीरों में से एक हैं लेफ्टिनेंट आर. माधवन पिल्लई, जो आजाद हिंद फ़ौज (INA) के अंतिम सिपाहियों में शामिल हैं। आज 101 वर्ष के पिल्लई उस जज़्बे और साहस की प्रतिमूर्ति हैं, जिसने उन्हें 21 वर्ष की उम्र में “दिल्ली चलो” के नारे के साथ स्वतंत्रता के संघर्ष में झोंक दिया।
नेताजी के प्रेरक नेतृत्व की यादें
पिल्लई के अनुसार, आज़ाद हिंद फ़ौज सिर्फ़ एक सैन्य संगठन नहीं था, बल्कि यह देश के हर कोने से उठी उम्मीदों, त्याग और साहस की जीवंत मिसाल थी। उनके शब्दों में,
“आज़ादी हमें मिली नहीं थी… हमने उसे बलिदान, दर्द, भूख और संघर्ष से जीता था। नेताजी हमेशा कहते थे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।’ और हमने दिलों से इसे स्वीकार कर लिया।”
उनका यह अनुभव आज भी यह संदेश देता है कि स्वतंत्रता का जज़्बा उम्र से नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ा होता है।
संघर्ष और साहस की अमिट गाथा
पिल्लई ने याद किया कि INA के जवानों ने कठिन परिस्थितियों, संसाधनों की कमी और दुश्मनों की चुनौतियों के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। नेताजी बोस के नेतृत्व ने हर सिपाही को यह विश्वास दिलाया कि भारत एक दिन आज़ाद होगा, और यही विश्वास उनकी सबसे बड़ी ताकत था।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
लेफ्टिनेंट माधवन पिल्लई आज भी स्वतंत्रता आंदोलन की जीवित विरासत हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि आज़ादी केवल तारीख नहीं, बल्कि अनगिनत बलिदानों की गूँज है। भारत हमेशा उन वीरों का ऋणी रहेगा जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे वर्ष देश के नाम कर दिए।
उनकी देशभक्ति, जज़्बा और जीवट आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी और यह याद दिलाती रहेगी कि स्वतंत्रता का मूल्य हमेशा सम्मान और कृतज्ञता के साथ याद किया जाना चाहिए।
Author: Deepak Mittal









