हिमालय में गूंजी जशपुर की गूंज: आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक पर खोला नया मार्ग
छत्तीसगढ़ के जशपुर के युवाओं ने हिमालय की ऊँचाइयों में रचा नया इतिहास, “विष्णु देव रूट” के नाम से दर्ज हुई उपलब्धि
रायपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले के आदिवासी युवाओं के एक दल ने भारतीय पर्वतारोहण इतिहास में सुनहरा अध्याय जोड़ दिया है। इस दल ने हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊँची जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोला है, जिसे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सम्मान में “विष्णु देव रूट” नाम दिया गया।
यह उपलब्धि इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि दल ने यह कठिन चढ़ाई सिर्फ 12 घंटे में, वह भी आल्पाइन शैली में पूरी की — जिसमें न तो फिक्स रोप का प्रयोग किया गया, न कोई सहायक दल शामिल था। यह अभियान सितंबर 2025 में आयोजित हुआ था, जिसका आयोजन जशपुर प्रशासन ने पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से किया।
नई ऊँचाइयों को छुआ, नया इतिहास रचा
इस ऐतिहासिक पर्वतारोहण को हीरा ग्रुप समेत कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने समर्थन दिया। अभियान की खास बात यह रही कि दल के सभी पाँच पर्वतारोही पहली बार हिमालय पहुँचे थे। उन्होंने प्रशिक्षण जशपुर के “देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया” में लिया — जो भारत का पहला प्राकृतिक एडवेंचर प्रशिक्षण केंद्र है।
अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार के नेतृत्व में इस टीम में राहुल ओगरा, हर्ष ठाकुर, रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक शामिल रहे। तकनीकी और मानसिक तैयारी के लिए अंतरराष्ट्रीय कोचों डेव गेट्स (USA), टोती वेल्स (स्पेन), मार्टा पेड्रो, अर्नेस्ट वेंटुरिनी, और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने सहयोग किया।
कठिनाइयों पर विजय, सीमाओं को लांघा
स्वप्निल राचेलवार ने बताया कि मौसम और दृश्यता दोनों चुनौतीपूर्ण थे। ग्लेशियर की दरारें लगातार बाधा बन रहीं थीं, फिर भी टीम ने बिना किसी बाहरी सहायता के मार्ग खोला। स्पेन के प्रसिद्ध पर्वतारोही टोती वेल्स, जो अभियान की कोर टीम में थे, ने कहा —
“इन युवाओं ने, जिन्होंने जीवन में कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है। यह साबित करता है कि अवसर मिलने पर ये पर्वतारोही विश्वस्तर पर चमक सकते हैं।”
‘छुपा रुस्तम पीक’ पर भी फहराया परचम
दल ने दूहंगन घाटी में सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स खोले, जिनमें सबसे खास रही 5,350 मीटर ऊँची अनक्लाइम्ब्ड ‘छुपा रुस्तम पीक’ की सफल चढ़ाई। इसके मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma)’ नाम दिया गया, जो हल्दी का वैज्ञानिक नाम है — भारतीय परंपरा में सहनशक्ति और उपचार का प्रतीक।
आदिवासी युवाओं की क्षमता का प्रमाण
यह अभियान तीन महत्वपूर्ण संदेश देता है —
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आदिवासी युवाओं में जन्मजात सहनशीलता और पर्यावरण से जुड़ी सहज समझ उन्हें एडवेंचर खेलों के लिए उपयुक्त बनाती है।
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स्थानीय प्रशिक्षण केंद्र, जैसे “देशदेखा क्लाइम्बिंग सेक्टर”, अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्वतारोही तैयार कर सकते हैं।
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हिमालय की अनदेखी चोटियाँ सतत एडवेंचर पर्यटन की नई संभावनाएँ खोल सकती हैं।
जशपुर बनेगा इको-टूरिज़्म का केंद्र
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा —
“भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।”
इस सफलता के बाद जशपुर को सतत एडवेंचर एवं इको-टूरिज़्म केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।
Author: Deepak Mittal










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