दीपावली का पर्व देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का दिन है और यह उत्सव धन प्रधान है. धन भी ऐसा जो शुद्ध और सात्विक भाव से कमाया गया हो तो वह अपने आप ही लक्ष्मी स्वरूप बन जाता है. इस तरह का धन स्थिर होते हुए जुड़ता जाता है और सवाया होकर बढ़ता जाता है और इसे ही कहते हैं कि घर में लक्ष्मी का वास होना.
देवी लक्ष्मी का स्वभाव चंचल है और वह किसी स्थान पर बहुत मुश्किल से ही ठहर पाती हैं. पुराणों में जिक्र आता है कि देवी लक्ष्मी असुरों और राक्षसों के पास भी रहने गई थीं, लेकिन वह थोड़े ही समय वहां से लौट आई थीं और वापस देवराज इंद्र के स्वर्ग में स्वर्ग लक्ष्मी बनकर रहने लगीं.
देवी लक्ष्मी ने देवराज इंद्र को बताया था रहस्य
तब देवराज इंद्र के पूछने पर देवी लक्ष्मी ने खुद इस रहस्य को बताया था कि वह किन जगहों और घरों में निवास करती हैं और कहां से चली जाती हैं. महाभारत के शांति पर्व में देवराज इंद्र और महालक्ष्मी के इस संवाद का वर्णन है. इस संवाद के मुताबिक आज भी जिन घरों में इन बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है, वहां दरिद्रता का वास होता है.
महाभारत के शांति पर्व में शामिल है प्रसंग
महाभारत में दिए गए प्रसंग के अनुसार एक समय जब देवी लक्ष्मी असुरों का साथ छोड़कर देवराज इंद्र के यहां निवास करने के लिए पहुंची थीं, तब इंद्र ने लक्ष्मी से पूछा था कि किन कारणों से आपने दैत्यों का साथ छोड़ दिया है? इस प्रश्न के उत्तर में लक्ष्मी ने देवताओं के उत्थान तथा दानवों के पतन के कारण बताए थे.
सूर्योदय के बाद तक सोना, देवी लक्ष्मी को कर सकता है नाराज
देवी लक्ष्मी ने बताया जो लोग व्रत-उपवास करते हैं. प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व शैय्या (बिस्तर) का त्याग कर देते हैं, रात को सोते समय दही और सत्तू का सेवन नहीं करते हैं, सुबह-सुबह घी और पवित्र वस्तुओं का दर्शन किया करते हैं, दिन के समय कभी सोते नहीं हैं, इस सभी बातों का ध्यान रखने वाले लोगों के यहां लक्ष्मी सदैव निवास करती हैं. पूर्व काल में सभी दानव भी इन नियमों का पालन करते थे, इस कारण मैं उनके यहां निवास कर रही थी. अब सभी दानव अधर्मी हो गए हैं, इस कारण मैंने उनका त्याग कर दिया है.
प्रह्लाद और बलि ने दैत्य होकर भी किया था धर्म का पालन
असल में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने असुर और दैत्य कुल में जन्म लेकर धर्म और नीति का पालन किया था. धर्म और नीति का ये पालन महाराज बलि के काल तक चला. बलि तो इतने धर्मात्मा राजा थे कि देवी लक्ष्मी उनके पाताल लोक में रहने लगी थीं और पाताल निवासिनी कहलाई थीं. बलि के बाद असुर और दैत्य इस नीति को छोड़ते गए और देवी लक्ष्मी पाताल से चली लौट आईं.
तब देवराज इंद्र ने देवी लक्ष्मी से असुरों पर कृपा न करने का कारण पूछा. महालक्ष्मी ने देवराज इंद्र को बताया कि जो पुरुष दानशील, बुद्धिमान, भक्त, सत्यवादी होते हैं, उनके घर में मेरा वास होता है. जो लोग ऐसे कर्म नहीं करते हैं, मैं उनके यहां निवास नहीं करती हूं. देवी लक्ष्मी कहती हैं कि पूर्व काल में मैं असुरों के राज्य में निवास करती थीं, लेकिन अब वहां अधर्म बढ़ने लगा है. इस कारण मैं देवताओं के यहां निवास करने आई हूं.
देवराज इंद्र ने पूछा था देवी लक्ष्मी के प्रसन्न रहने का उपाय
इंद्र के पूछने पर महालक्ष्मी ने कहा कि जो लोग धर्म का आचरण नहीं करते हैं. जो लोग पितरों का तर्पण नहीं करते हैं. जो लोग दान-पुण्य नहीं करते हैं, उनके यहां मेरा निवास नहीं होता है. पूर्व काल में दैत्य दान, अध्ययन और यज्ञ किया करते थे, लेकिन अब वे पाप कर्मों में लिप्त हो गए हैं. अत: मैं उनके यहां निवास नहीं कर सकती.
जहां मूर्खों का आदर होता है, वहां उनका निवास नहीं होता. जिन घरों में स्त्रियां दुराचारिणी यानी बुरे चरित्र वाली हो जाती हैं, जहां स्त्रियां उचित ढंग से उठने-बैठने के नियम नहीं अपनाती हैं, जहां स्त्रियां साफ-सफाई नहीं रखती हैं, वहां लक्ष्मी का निवास नहीं होता है. देवी लक्ष्मी ने बताया कि वह स्वयं धनलक्ष्मी, भूति, श्री, श्रद्धा, मेधा, संनति, विजिति, स्थिति, धृति, सिद्धि, समृद्धि, स्वाहा, स्वधा, नियति तथा स्मृति हैं. धर्मशील पुरुषों के देश में, नगर में, घर में हमेशा निवास करती हैं. देवी लक्ष्मी उन्हीं लोगों पर कृपा बरसाती हैं जो युद्ध में पीठ दिखाकर नहीं भागते हैं. शत्रुओं को बाहुबल से पराजित कर देते हैं. शूरवीर लोगों से लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं.
जूठे हाथों से घी छूने से भी नाराज हो जाती हैं देवी लक्ष्मी
जिन घरों में भोजन बनाते समय पवित्रता का ध्यान नहीं रखा जाता है, जहां जूठे हाथों से ही घी को छू लिया जाता है, वहां मैं निवास नहीं करती हूं .लक्ष्मी ने बताया जिन घरों में बहू अपने सास-ससुर पर नौकरों के समान हुकुम चलाती है, उन्हें कष्ट देती हैं, अनादर करती है, मैं उन घरों का त्याग कर देती हूं.
जिस घर में पति-पत्नी कलह रहती है, पत्नी और पति एक-दूसरे की बात नहीं मानते हैं. वे अनैतिक संबंध रखते हैं मैं उन घरों का त्याग कर देती हूं. जो लोग अपने शुभ चिंतकों के नुकसान पर हंसते हैं, उनसे मन ही मन द्वेष भाव रखते हैं, किसी को मित्र बनाकर उसका अहित करते हैं तो मैं उन पर लोगों कृपा नहीं बरसाती हूं. ऐसे लोग सदैव दरिद्र रहते हैं. ये वो गलतियां जो किसी भी मनुष्य को अनजाने में ही नुकसान पहुंचाती हैं और उसे दरिद्र बना देती हैं.
दिवाली पर लें शुद्ध आचरण अपनाने का संकल्प
इसलिए दिवाली के मौके पर देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि देवी किन घरों में वास करती हैं और वैसा ही आचरण भी जीवन में उतरना होगा. असल में लक्ष्मी शुभ लक्षणों का ही नाम है. ये शुभ लक्षण ही शुभ लक्ष्मी हैं और हमारे आचरण में उतरकर हमारी समृद्धि बन जाती हैं. इसीलिए दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है.

Author: Deepak Mittal
