परंपरा का वाहक: सरगाँव का बजरंग अखाड़ा

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निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111

सरगांव। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में गौरा-गौरी (शिव-पार्वती) विवाह का पर्व विशेष महत्व रखता है, जो दीपावली की रात्रि में मनाया जाता है। इस पारंपरिक उत्सव में सरगाँव का बजरंग अखाड़ा ईश्वर गौरी की बारात के स्वागत की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।

बजरंग अखाड़ा में गांव के बच्चों एवं युवाओं को विभिन्न प्रकार के युद्ध कौशल सिखाए जाते हैं, जो आज के समय में युवाओं को शारीरिक रूप से मजबूत एवं आत्मनिर्भर बनाते हैं।यह अखाड़ा सरगाँव में वर्ष 1985 में स्वर्गीय छोटेलाल श्रीवास जी द्वारा प्रारंभ किया गया था। उनकी पहल पर शुरू हुआ यह प्रयास आज भी गांव की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखे हुए है।

वर्तमान में, बजरंग अखाड़ा का संचालन स्वर्गीय छोटेलाल श्रीवास जी के सुपुत्रों सुनील श्रीवास और सुशील श्रीवास द्वारा किया जा रहा है। वे न केवल अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि पूरे उत्साह और समर्पण के साथ इस लोकपर्व को भव्यता प्रदान कर रहे हैं।

इस प्रतिष्ठित संस्था के अध्यक्ष महेश साहू हैं, जबकि सदस्य एवं खिलाड़ी अनिल श्रीवास, ब्रजेश शर्मा, त्रिलोचन साहू, रोहित साहू, प्रेम साहू, सोनू श्रीवास, रजत साहू, किशन साहू, वीरेंद्र, सुरेश, देवेश, मनीष, रमन, जतिन, मनोहर, अर्जुन, कपिल तथा स्वप्निल हैं। ये सभी बजरंग अखाड़ा के सदस्य गौरा-गौरी विवाह के पावन अवसर पर शिव-पार्वती के प्रतीकात्मक बारात के स्वागत की रस्म को पूरी श्रद्धा और गरिमा के साथ निभाते हैं।

यह अखाड़ा सिर्फ एक संस्थान नहीं, बल्कि गांव की एकता और लोक-परंपरा के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है।बजरंग अखाड़ा के सदस्यों का यह सामूहिक प्रयास न केवल परंपरा को सहेज रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को भी छत्तीसगढ़ की गौरवशाली संस्कृति से जोड़ रहा है। गौरा-गौरी विवाह के इस आयोजन में उनका योगदान सरगांव के सांस्कृतिक कैलेंडर का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

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Author: Deepak Mittal

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