पिछले एक दशक में खासकर मई 2014 के बाद से भ्रष्टाचार, हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ED की कार्रवाई में भारी उछाल आया है। सरकारी आंकड़ों और ईडी के खुद के डेटा के अनुसार पिछले 10 सालों में देशभर में 4,500 से ज़्यादा छापे मारे गए हैं और इन छापों में 9,500 करोड़ रुपये से अधिक की रिकॉर्ड नकदी बरामद की गई है।
यूपीए शासनकाल की तुलना में भारी बढ़ोतरी
अगर हम यूपीए शासनकाल (2004 से 2014) से तुलना करें तो यह अंतर साफ़ दिखता है। उस समय ईडी की कार्रवाई बहुत सीमित थी। उस दौरान केवल 200 से 250छापे पड़े थे और कुल 800 से 900 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई थी। तब ईडी का ध्यान ज़्यादातर हवाला नेटवर्क और विदेशी मुद्रा के उल्लंघन पर था, जबकि अब बड़े पैमाने पर नकद बरामदगी आम हो गई है।

विपक्ष का आरोप और सुप्रीम कोर्ट की फटकार
ईडी की इस तेज़ कार्रवाई पर विपक्ष लगातार निशाना साध रहा है। विपक्षी दलों का दावा है कि ईडी की ज़्यादातर कार्रवाई राजनीतिक उद्देश्यों से विपक्षी नेताओं के खिलाफ होती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी के काम करने के तरीकों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि ईडी अपनी ‘सीमाएं लांघ रहा है‘।
कार्रवाई में कौन-कौन शामिल?
ईडी की कार्रवाई की जद में सांसद विधायक, पूर्व मंत्री और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग रहे हैं। पिछले एक दशक में ऐसे 190 से ज़्यादा लोगों के ठिकानों पर छापे मारे गए हैं। इसके अलावा 80 से 100 वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस और राज्य सेवा अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। हाल ही में पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हुई कार्रवाइयों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेता सुर्खियों में रहे हैं।

ED की ताकत में बढ़ोतरी: 2019 में मिला नया अधिकार
एनडीए सरकार ने वर्ष 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) में बड़ा बदलाव किया, जिससे ईडी को ज़्यादा ताकत मिली। अब ईडी खुद ही एफआईआर दर्ज कर सकती है और आरोपियों को गिरफ्तार भी कर सकती है। पहले ईडी को किसी और एजेंसी द्वारा दायर की गई चार्जशीट का इंतज़ार करना पड़ता था, जिसमें PMLA की धाराएं लगी हों, तभी वह जांच शुरू कर सकती थी। इस बदलाव के बाद से ईडी की कार्रवाई में अप्रत्याशित तेज़ी आई है।
जब्त नकदी का क्या होता है?
ईडी के छापों में जब्त की गई सारी नकदी RBI में जमा कर दी जाती है। अगर अदालत यह मान लेती है कि यह रकम अपराध से कमाई गई है, तो इसे सरकार के राजस्व में जोड़ दिया जाता है। जब तक अदालत का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक यह नकदी आरबीआई की कस्टडी में सुरक्षित रहती है।
Author: Deepak Mittal









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