(स्वरचित कविता – डॉ. सरिता चौहान, उत्तर प्रदेश)
जीवन एक संघर्ष नहीं,
एक आशा, एक प्रत्याशा है।
संसार की बगिया में
एक मिला हुआ सुंदर फूल है।
रम्य और मनोरम दृश्य हैं,
प्रफुल्लता और उल्लास है।
हर्ष और उमंग है,
दुख और निराश तो जीवन का अंत है।
आशा जीवन का आरंभ है,
प्रत्याशा जीवन का विकास है।
हताशा जीवन की कमजोरी है,
निराशा अंत है।
फिर क्यों ना हम आशावान बनें?
आशा ही आस्था का सूत्र है,
आस्था ही जीवन की परिणिति है।
प्रेम जीवन का मूल है,
सदाचार ही जीवन का विकास है।
मातृभक्ति, पितृभक्ति, भ्रातृप्रेम,
देशभक्ति, देवभक्ति
जीवन का उन्नयन है।
पुरुषार्थ ही वास्तविक कर्म है,
कर्म ही पूजा है।
पूजा, अर्चना, आरती सब स्त्रीलिंग हैं।
ज्योतिर्लिंग में समाई हुई ज्योति भी स्त्रीलिंग है।
इसलिए नारी का सम्मान कीजिए
और आगे बढ़िए।
जीवन को एक संघर्ष नहीं,
एक अनमोल धरोहर समझिए।

Author: Deepak Mittal
