प्रदेश में बिना मान्यता के संचालित हो रहे 330 से अधिक नर्सरी स्कूलों के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि “आपके जवाब से तो लगता है कि अब पानठेला वाले भी स्कूल खोल सकते हैं।”
मामले की सुनवाई कांग्रेस नेता विकास तिवारी द्वारा दायर याचिका पर हुई, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया कि वर्ष 2013 से लागू मान्यता नियमों को दरकिनार कर सरकार ने नए नियम बनाकर उन्हें पिछली तिथि से लागू करने का प्रयास किया है। कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि यह प्रक्रिया बड़े स्कूल संचालकों को बचाने के उद्देश्य से की गई है।
शिक्षा विभाग द्वारा दाखिल शपथ पत्र में यह दावा किया गया था कि नर्सरी स्कूलों को मान्यता देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने 2013 के सरकारी सर्कुलर का हवाला देकर इस दावे को गलत ठहराया। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि “जब कार्रवाई की बारी आई, तो आपने नियम ही बदल दिए। मर्सिडीज में घूमने वालों को बचाने के लिए सरकार ने नियमों से खिलवाड़ किया है।”
हाईकोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि जब वर्ष 2013 से मान्यता आवश्यक थी, तो 12 वर्षों तक बिना अनुमति स्कूल कैसे चलते रहे? कोर्ट ने बच्चों और पालकों से ठगी करने वाले ऐसे स्कूलों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने और सभी प्रभावित छात्रों को मुआवजा दिलाने के निर्देश दिए।
“गली-मोहल्लों में स्कूल खोलकर लाखों रुपये कमाए गए और खुद मर्सिडीज में घूम रहे हैं। यह बच्चों और अभिभावकों के साथ खुला फ्राड है। मुआवजा दिलवाइए, तो इनका सारा कमाया गया पैसा निकल जाएगा।”
जब कोर्ट को बताया गया कि शिक्षा सचिव अवकाश पर हैं, तो चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, “लगता है सचिव साहब हमारे डर से 15 दिन की छुट्टी को 30 दिन बढ़ा देंगे।” कोर्ट ने कहा कि इतनी गंभीर स्थिति में सचिव की अनुपस्थिति अस्वीकार्य है। अब 13 अगस्त को अगली सुनवाई से पहले सचिव या संयुक्त सचिव को शपथ पत्र दाखिल करना होगा।

Author: Deepak Mittal
