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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के निधन के बाद जानें कैसे होता है सिख धर्म में अंतिम संस्कार? कब तक रहता है शोक

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Deepak Mittal

How do Sikhs do cremation : पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मनमोहन सिंह के निधन पर 7 दिनों के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया है। वे लंबे समय से बीमार थे और घर पर बेहोश होने के बाद उन्हें रात 8:06 बजे दिल्ली AIIMS लाया गया था।

हॉस्पिटल बुलेटिन के अनुसार, उन्होंने रात 9:51 बजे अंतिम सांस ली। उनकी अंतिम यात्रा शनिवार, 28 दिसंबर को सुबह 9:30 बजे दिल्ली स्थित AICC मुख्यालय से शुरू होगी, यह जानकारी कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दी।

यह माना जाता है कि जिस व्यक्ति का जन्म जिस धर्म में होता है, उसका अंतिम संस्कार भी उसी धर्म के अनुसार करना चाहिए, क्योंकि हर धर्म में अंतिम संस्कार का विशेष महत्व होता है। विभिन्न धर्मों में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में भिन्नताएँ होती हैं, लेकिन कुछ समानताएँ भी देखने को मिलती हैं।

उदाहरण के तौर पर, ईसाई और मुस्लिम समुदाय में शव को दफनाने की परंपरा है, जबकि पारसी और बौद्ध धर्म में शव को मांसाहारी पक्षियों जैसे गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है। हिंदू और सिख धर्म में शव का दाह-संस्कार किया जाता है, और इन दोनों धर्मों में इस प्रक्रिया में कई समानताएँ पाई जाती हैं।

क्‍यों क‍िया जाता है अंत‍िम संस्‍कार?

शव का अंतिम संस्कार हर धर्म और संप्रदाय में महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि विधिपूर्वक अंतिम संस्कार न करने से आत्मा मुक्ति प्राप्त नहीं करती और भटकती रहती है। आत्मा की शांति और घर की सुख-शांति के लिए इसे धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता है। इसका वैज्ञानिक कारण भी है, क्योंकि शव का अंतिम संस्कार न होने पर मृत देह सड़ने लगती है, जिससे बदबू फैलने के साथ कई बीमारियों का खतरा बढ़ता है। इसलिए सभी धर्मों में अंतिम संस्कार का पालन किया जाता है।

सिख धर्म में कैसे होता है अंत‍िम संस्‍कार?

सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू धर्म से मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें कुछ अंतर हैं। सिख धर्म में महिलाओं को भी श्मशान घाट जाने की छूट होती है, जबकि हिंदू धर्म में यह प्रतिबंधित है। किसी के निधन के बाद शव को पहले नहलाया जाता है और फिर सिख धर्म के 5 प्रमुख चिह्न – कंघा, कटार, कड़ा, कृपाण और केश – संवारे जाते हैं। इसके बाद परिजन और करीबी शव को वाहेगुरु का नाम लेते हुए श्मशान तक ले जाते हैं, जहां मृतक के करीबी शव को मुखाग्नि देते हैं।

10 दिनों तक होती है अरदास

दाह संस्कार के बाद श्मशान से लौटकर सभी लोग नहाते हैं और फिर शाम को भजन और अरदास की जाती है। इसके बाद सिख धर्म के प्रमुख ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू होता है। यह पाठ 10 दिनों तक निरंतर चलता है, जिसमें सिख समुदाय के लोग शामिल होते हैं। 10 दिन के पाठ के बाद, गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ में शामिल हुए सभी लोगों को कड़हा प्रसाद दिया जाता है। फिर भजन-कीर्तन होता है, जिसमें सभी लोग मिलकर मरने वाले व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए अरदास करते हैं।

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Author: Deepak Mittal

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