अधिकारियों के अनुसार, आयकर विभाग को रात करीब 2 बजे सूचना मिली। एक आईटी अधिकारी ने बताया, “हमें सूचना मिलने के बाद 30 वाहनों में सवार 100 पुलिसकर्मियों की टीम मौके पर पहुंची। बताया जा रहा है कि कार एक बिल्डर के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिसे पुलिस पकड़ने की कोशिश कर रही है।” अधिकारी ने बताया कि आईटी विभाग के अधिकारियों ने भोपाल और इंदौर में त्रिशूल कंस्ट्रक्शन, क्वालिटी ग्रुप और ईशान ग्रुप से जुड़े 51 ठिकानों पर छापेमारी की है।
डीसीपी भोपाल जोन-1 प्रियंका शुक्ला ने बताया, “हमें सूचना मिली थी कि रातीबड़ इलाके के मेंडोरी के जंगल में एक लावारिस कार है। वहां पहुंचने पर पता चला कि कार के अंदर करीब 7 बैग थे…जब बैग की जांच की गई तो उसमें 52 किलो सोना और पैसों के बंडल मिले…कार चेतन सिंह के नाम पर रजिस्टर्ड है, जो ग्वालियर का रहने वाला है। फिलहाल वह भोपाल में रह रहा है। मामले में आगे की जांच चल रही है।”
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस घटना को लोकायुक्त द्वारा पूर्व आरटीओ कांस्टेबल सौरभ शर्मा और उनके सहयोगी चंदन सिंह गौर पर की गई छापेमारी से जोड़ा जा रहा है। इस जब्ती से दोनों की ओर और अधिक ध्यान गया है, जो पहले से ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच के घेरे में हैं। लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना (एसपीई) ने गुरुवार को शर्मा और गौर के आवासों पर छापेमारी की। इस रेड में अरेरा कॉलोनी में स्थित शर्मा के घर से 2.5 करोड़ रुपये कैश, सोना, चांदी के आभूषण और संपत्ति के दस्तावेज बरामद किए गए। इन संपत्तियों की कीमत 3 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है।
#WATCH | Madhya Pradesh | Visual of the car from which the Bhopal Police and Income Tax seized 52 kg of gold and bundles of money
The car was found abandoned in the jungle of Mendori in the Ratibad area. Police and Income Tax are trying to find out who left the money and gold… https://t.co/ZgT17Ubcce pic.twitter.com/fqhhzMSJMJ
— ANI (@ANI) December 20, 2024
एक साल पहले परिवहन विभाग से स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेने वाले सौरभ शर्मा अब रियल एस्टेट में सक्रिय हैं। छापेमारी में कई संपत्तियों, एक होटल और एक स्कूल में निवेश का पता चला। शर्मा से जुड़ी संपत्तियां भोपाल समेत कई जिलों में फैली हुई हैं। भ्रष्टाचार और अवैध भूमि उपयोग की शिकायतों के कारण जांच शुरू हुई। मूल रूप से ग्वालियर के रहने वाले शर्मा अपने पिता की मृत्यु के बाद हुई नियुक्ति पर परिवहन विभाग में शामिल हुए थे। अपने 12 साल के कार्यकाल के दौरान, उनकी जीवनशैली और संपत्तियों में भारी बदलाव आया, जिससे उनपर संदेह पैदा हुआ।